मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी गई प्रस्ताव की फाइल कुछ आपत्तियों के साथ लौटा दी गई वापस जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख के अप्रत्यक्ष चुनाव का कार्यक्रम भी रुका लखनऊ। चुनाव, मतगणना तथा परिणाम आने के बाद अब उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों का गठन, पंचायत प्रतिनिधियों का शपथ ग्रहण तथा ग्राम पंचायतों की पहली बैठक का पूरा कार्यक्रम फिलहाल लटक गया है। इसी के साथ जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख के अप्रत्यक्ष चुनाव के कार्यक्रम को भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। पंचायतीराज विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विभाग की ओर से इस बाबत मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी गई प्रस्ताव की फाइल कुछ आपत्तियों के साथ वापस लौटा दी गई है। बताया जाता है कि इन आपत्तियों में सबसे अहम कोरोना संक्रमण है। नवनिर्वाचित ग्राम प्रधानों व ग्राम पंचायत सदस्यों के शपथ ग्रहण और पहली बैठक कराने का प्रस्ताव तैयार किया था। 12 से 14 मई तक शपथ ग्रहण कराने की योजना थी। 15 मई को पूरे प्रदेश में एक साथ ग्राम सभा की पहली बैठक कराने का प्रस्ताव था। इसी दिन से नवनिर्वाचित ग्राम पंचायतों के कार्यकाल की शुरुआत मानी जाती। जिला पंचायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत प्रमुखों का चुनाव इसी महीने करवाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री कार्यालय भेजा गया था। ब्लॉक प्रमुख के चुनाव संबंधी प्रक्रिया 14 मई से व जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव संबंधी कार्यवाही 20 मई से शुरू करने का प्रस्ताव था। ब्लॉक प्रमुख के चुनाव 14 से 17 मई के बीच कराने की योजना थी। उधर जिला पंचायत अध्यक्ष व क्षेत्र पंचायत प्रमुख के चुनाव को लेकर सियासी सक्रियता बढ़ गई है। खासतौर पर सत्तारूढ़ भाजपा व मुख्य विपक्षी दल सपा के बीच ज्यादा से ज्यादा ब्लॉक प्रमुख व जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर अपने लोगों को काबिज करवाने की होड़ चल रही है। दोनों ही दलों के सांसद, विधायक व पार्टियां विधानसभा चुनाव से पहले अपना दबदबा दिखाने के लिए ज्यादा से ज्यादा पदों पर कब्जे के प्रयास में हैं। क्षेत्र पंचायत सदस्यों का चुनाव पूरी तरह गैरदलीय व्यवस्था में लड़ा गया। अब क्षेत्र पंचायत प्रमुख पदों के लिए दावेदारों ने अधिकतम क्षेत्र पंचायत सदस्यों को अपने पाले में करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसके लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इसमें किसी भी कीमत पर निर्वाचन प्रमाणपत्र अपने पास मंगाकर रखने से लेकर विजयी सदस्यों को अपने पक्ष में करने के प्रयास किए जा रहे हैं। दूसरी ओर, प्रमुख राजनीतिक दलों ने जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव बिना पार्टी सिंबल के दलीय आधार पर लड़ा। जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव का महत्व सबसे ज्यादा है। जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में सर्वाधिक सदस्य निर्दलीय जीते हैं। ऐसे में निर्दलीय सदस्यों को अपने पाले में खींचने के लिए भी विभिन्न स्तर के प्रयास तेज हो गए हैं।