जेल के खेल में सरकार और प्रशासन फेल
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Saturday, May 15, 20214 minute read
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लखनऊ, 15 मई। जेल में चल रहे खेल को रोकने में सरकार और जेल प्रशासन फेल है। अपराधियों और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की दुरभिसंधि के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाली उत्तर प्रदेश की जेलों का खेल आज एक बार फिर बहस का सबब बन गया है। करीब तीन साल पहले बागपत की जेल में माफिया डॉन और विधायक मुख्तार अंसारी का दाहिना हाथ समझे जाने वाले खूंखार अपराधी मुन्ना बजरंगी को जेल के भीतर पश्चिमी यूपी के गैंगस्टर सुनील भाटी ने गोलियों से छलनी कर दिया तो राज्य सरकार ने तमाम बदलाव की कवायद शुरू कर दी थी। आज भी जिसकी जांच सीबीआई कर रही है। बिल्कुल उसी तर्ज पर उससे ज्यादा सनसनीखेज कांड चित्रकूट की जेल में हो गया, जहां सुबह सबेरे ही एक अपराधी ने दो अपराधियों को गोलियों से छलनी कर दिया और थोड़ी देर बाद खुद पुलिस की गोली से मारा गया। बागपत और चित्रकूट जेल की घटनाओं मे कुछ समानता है। यह कि दोनों कांड में जेल के भीतर नाइन एमएम पिस्टल जैसे घातक हथियार का इस्तेमाल किया गया और अपराधी के हाथों मारे गए अपराधी माफिया सरगना मुख्तार अंसारी से नजदीकी जुड़े हुए हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई और छात्र राजनीति करते करते अपराधी बना सीतापुर का अंशु दीक्षित हत्या, अपहरण और पुलिस पर जानलेवा हमले सहित दर्जनों जघन्य आपराधिक घटनाओं में शामिल बताया जाता है। उसने जेल में ही पिस्टल का इंतजाम किया, जाहिर है कि किसी ऐसे अंदर वाले ने ही मदद की जिसकी तलाशी नहीं होती यानि कि किसी स्टाफ ने। सबेरे करीब नौ बजे उसने मुकीम काला और मेराजुद्दीन उर्फ भाई मेराज पर ताबड़तोड़ फायरिंग की और दोनों मौके पर ही मारे गए। पुलिस के मुताबिक अंशु ने पांच अन्य बंदियों को अपने कब्जे में लेकर मारने की धमकी दी। थोड़ी देर बाद पुलिस जेल में घुसी और वह मारा गया। अंशु दीक्षित करीब दो साल से इसी जेल में बंद था जबकि मेराज इसी साल 20 मार्च को वाराणसी और मुकीम काला अभी हफ्ते भर पहले महराजगंज जेल से यहां ट्रांसफर किए गए थे। खबर लखनऊ पहुंची और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंडलायुक्त-आईजी पुलिस सहित छह अफसरों की तीन बनाकर छह घण्टे के भीतर रिपोर्ट तलब की है। खूंखार अपराधी ने दुर्दांत अपराधियों को जेल के भीतर मार डाला और खुद पुलिस की गोली से मारा गया, तीनों का लंबा चैड़ा खूनी इतिहास था, इसके आपराधिक पक्ष की विवेचना चाहे जब एवं जिस निष्कर्ष पर पहुंचे लेकिन इतना साफ है कि राज्य में जेलों के भीतर चलने वाले खेल जल्द खत्म होने वाले नहीं हैं। पहले जेलों की प्रशासनिक कमान आईएएस अधिकारियों के हाथ में होती थी। वर्षों पहले बड़े बदलाव के तहत इसके मुखिया भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी बनाए जाने लगे।
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