कानपुर। खुद को आईपीएस अफसर बताकर डीसीपी ट्रैफिक को फोन करने वाले एक शिक्षक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उसके पास से होम मिनिस्ट्री का एक फर्जी आई कार्ड बरामद हुआ है। इससे पहले 2014 में फर्जी रॉ एजेंट बनकर वसूली के आरोप में जेल जा चुका है। डीसीपी ट्रैफिक बीबीजीटीएस मूर्ति ने बताया कि 16 अगस्त की दोपहर उन्हें एक फोन आया। फोन करने वाले ने अपना नाम आशुतोष त्रिपाठी बताया। उसने कहा कि आईपीएस अधिकारी है और एनटीआओ (नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन) में तैनात बताया। आरोपित ने डीसीपी से पूछा कि वाहन के चालान निरस्त हो सकते हैं क्या? इस पर डीसीपी ने जवाब दिया कि कारण सही है तो हो सकते हैं। साथ ही डीसीपी ने आरोपित से उसका आईपीएस बैच पूछा तो उसने बात घुमा दी। आरोपित ने डीसीपी से कहा कि एक ऑपरेशन के दौरान पैर में 1.55 एमएम की गोली लगी है, नहीं तो वह मिलने पहुंचता। इस पर डीसीपी ने ऑपरेशन के बारे में जानकारी मांगी तो आरोपित ने फिर बात घुमा दी। पता पूछा तो चकेरी बताया। उन्होंने तत्काल क्राइम ब्रांच को सूचना दी। क्राइम ब्रांच के एक दरोगा को गुलदस्ता लेकर उसके पास भेजा गया। आरोपित गुलदस्ता लेने नहीं आया। उल्टा डीसीपी को फोन करके कहा कि वह अपना एक आदमी भेज रहा है, उसे गुलदस्ता दे दिया जाए। उसका आदमी पहुंचा, जिसके जरिए पुलिस आशुतोष त्रिपाठी तक पहुंच गई। वह शंकराचार्य नगर नौबस्ता का रहने वाला है। डीसीपी क्राइम सलमान ताज पाटिल ने बताया कि आरोपित के पास से मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स का आई कार्ड बरामद हुआ। उसने टेक्निकल डायरेक्टर का कार्ड बनवाया हुआ था। रैंक में ए प्लस ऑफिसर लिखा था। आरोपित आशुतोष ने पुलिस को बताया कि वह किदवई नगर में घनश्याम दास शिवकुमार सीनियर सेकेंडरी स्कूल में सरकारी टीचर है। खुद को इंजीनियर बताया। यह भी कहा कि उसके दिमाग का इलाज बड़े डॉक्टर से चल रहा है। हालांकि वह इलाज के पर्चे नहीं दिखा सका। डीसीपी ट्रैफिक ने बताया कि आईपीएस अधिकारी बन उसने एक मोबाइल शोरूम की सेल्स गर्ल को फंसा लिया था। उससे वह लगातार फोन पर चैटिंग करता था। उसके भी सुराग मिले हैं। 7 नवम्बर 2014 को आशुतोष को कोतवाली पुलिस ने जेल भेजा था। वह कोतवाली में रॉ ऑफिसर बनकर पहुंच गया था। वहां पर पुलिस पर धाक जमा रहा था। उस दौरान आशुतोष ने पुलिस को बताया था कि उसका साला आर्मी में कर्नल है और दोनों ने कई ऑपरेशन साथ में किए हैं। तत्कालीन एसएसपी केएस इमैनुअल के आदेश पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर उसे जेल भेजा था। उसके पास जो वाहन था उसके दस्तावेज भी फर्जी निकले थे। आरोपित का आपराधिक इतिहास खंगाला जा रहा है। एक बार का तो पता चला है। यह जानकारी जुटाई जा रही है कि कहीं उसने किसी को नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी वगैरह तो नहीं की थी। अब तक इसके गिरोह बनाकर काम करने को लेकर जानकारी नहीं मिली है। - सलमान ताज पाटिल, डीसीपी क्राइम