अधर में लटका सपा-रालोद गठबंधन, जानिए क्यों

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लखनऊ। सपा और रालोद के बीच गठबंधन पर पूर्ण सहमति बन जाने के बाद भी सीटों के बंटवारे का पेंच नहीं सुलझ पा रहा है। दोनों दलों का शीर्ष नेतृत्व टिकट के दावेदारों से परेशान है। टिकट न मिलने की स्थिति में विद्रोह की आशंका को देखते हुए सीटों के बंटवारे पर वे बहुत सधे कदमों से आगे बढ़ना चाहते हैं।
कृषि कानून विरोधी रैलियों से अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने वाले रालोद के पास इस समय पश्चिमी यूपी के खास प्रभाव वाले जिलों में बड़ी संख्या में टिकटों के दावेदार आ रहे हैं। सपा के साथ गठबंधन में टिकट की अहमियत और बढ़ गई है। दावेदारों के इसी दबाव के कारण रालोद का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन में ज्यादा सीटें लेना चाहता है। उधर सपा भी पश्चिमी यूपी में अपनी मौजूदगी बनाए रखना चाहती है। ऐसे में सपा भी चाहती है कि गठबंधन में सीटों का बंटवारा इस तरह हो कि सभी जिलों में सपा के भी प्रत्याशी हों। वह यह तर्क भी दे रही है कि सभी जिलों में दोनों दलों के प्रत्याशी रहने पर ही एक दूसरे के वोटों को एकजुट रखा जा सकेगा। दोनों दलों के चुनाव चिह्न एक साथ दिखेंगे तो उसका भी फायदा मिलेगा।
सूत्रों के अनुसार मेरठ में सात दिसंबर को दोनों की साझा रैली के बाद सीटों के बंटवारे पर गंभीर मंथन शुरू होगा। इस रैली को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद मुखिया चौधरी जयंत सिंह संबोधित करेंगे। रैली के बाद सीटों पर संभावित प्रत्याशियों के नाम के साथ विचार होगा। दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा नामित पार्टी पदाधिकारी गठबंधन का सूत्र बनाने में लगे हैं। दोनों दलों के टिकट के दावेदारों पर एक साथ विचार करके सीटों के बंटवारे पर फैसला लिए जाने की संभावना है।

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