रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने दिया इस्तीफा लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन की हार के बाद राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) में भी बड़ा तूफान मच गया है। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने पार्टी छोड़ दी है। मसूद ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को लेटर लिखकर यूपी चुनाव में टिकट बेचे जाने से लेकर दलितों और मुसलमानों की उपेक्षा करने के भी आरोप लगाए हैं। मसूद ने खुले खत में लिखा वह 2015-16 में चौधरी अजित सिंह के आह्वान पर पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह जी के मूल्यों और जाट-मुस्लिम एकता के साथ किसानों, शोषित, वंचित वर्गों के अधिकार के लिए संघर्ष करने को रालोद में शामिल हुए थे। 2016-17 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। मसूद ने कहा कि उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए उन्होंने पार्टी के बुरे दौर में अथक प्रयास किया। मसूद ने चंद्रशेखर रावण के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे दलित वोट गठबंधन से छिटक कर बीजेपी में चला गया। उन्होंने जयंत चौधरी और अखिलेश यादव पर सुप्रीमो कल्चर अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि संगठन को दरकिनार कर दिया गया। रालोद और सपा नेताओं का प्रचार में उपयोग नहीं किया गया। पार्टी के समर्पित पासी और वर्मा नेताओं का उपयोग नहीं किया गया, जिससे वे चुनाव में छिटक गए। मसूद ने आगे लिखा, ''जौनपुर सदर जैसी सीटों पर्चा भरने में आखिरी दिन तीन बार टिकट बदले गए। एक सीट पर सपा के तीन-तीन उम्मीदवार हो गए। इससे जनता में गलत संदेश गया। नतीजा ये कि ऐसी कम से कम 50 सीटें हम 200 से 10000 मतों के अंतर से हार गए। पैसे लेकर टिकट बांटे जाने का आरोप लगाते हुए मसूद ने लिखा है, ''धन संकलन के चक्कर में प्रत्याशियों का समय रहते ऐलान नहीं हुआ। बिना तैयारी के चुनाव लड़ा गया। सभी सीटों पर लगभग आखिरी दिन पर्चा भरा गया। पार्टी कार्यकर्ताओं में रोष उत्पन्न हुआ और चुनाव के दिन सुस्त रहे। किसी भी प्रत्याशी को यह नहीं बताया गया कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा। कीमती समय में कार्यकर्ता लखनऊ और दिल्ली आप और अखिलेश जी के चरणों में पड़े रहे और चुनाव की तैयारी नहीं हो पाई। अखिलेश जी ने जिसको जहां मर्जी आई धन संकलन करते हुए टिकट दिए, जिससे गठबंधन बिना बूथ अध्यक्षों के चुनाव लड़ने पर मजबूर हुआ। उदाहरण के तौर पर स्वामी प्रसाद मौर्य जी को बिना सूचना के फाजिलनगर भेजा गया और वह चुनाव हार गए। अखिलेश जी और आपने तानाशाह की तरह काम किया, जिससे गठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा। मेरा आपको यह सुझाव है कि जब तक अखिलेश जी बराबर का सम्मान नहीं देते तब तक गठबंधन स्थगति करन दिया जाए।''