सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक पर्यावरण के लिए उचित कदम

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पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (भारत सरकार) द्वारा देश में 01 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पाद,बिक्री एवं उपयोग पर प्रतिबंध दिया गया।
इससे पहले देश का सिक्किम राज्य वर्ष 1998 में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़े बताते है कि भारत में प्रतिवर्ष लगभग 2.4 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। दुनिया भर में सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन और उपयोग वर्ष 1950 से प्रारंभ हुआ और आज लगभग प्रतिवर्ष 380 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन होता है।
प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और उसके पर्यावरणीय प्रभाव को देखते हुए 100 माइक्रोन से कम मोटाई के पॉलीथीन बैग,प्लास्टिक के झंडे,प्लास्टिक के निमंत्रण पत्र, सजावट वाले सामान,प्लास्टिक पैकिंग के सामान,मिठाइयों के पैकेट, सिगरेट के पैकेट,प्लास्टिक कटलरी जैसे, चम्मच,चाकू,गिलास,कप आदि। उत्पादों सहित 19 उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
मंत्रालय ने 2021 अधिसूचित नियम के अंतर्गत दिसंबर 31,2022 तक देश में चरणबद्ध तरीके से सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करने के क्रम में यह कदम उठाया है।
31 दिसंबर,2022 के पश्चात 120 माइक्रोन या उससे अधिक मोटे कैरी बैग (प्लास्टिक) का ही उपयोग किया जा सकेगा।
विदित है कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक उत्पाद होते है,जो हमारे मिट्टी,जल एवं वायु जैसे जीवनदायक संसाधन हेतु बहुत नुकसानदायक है।
प्लास्टिक उत्पाद को प्राकृतिक रूप से विघटित होने में हजारों वर्ष का समय लगता है ,ऐसे में ये हमारे नदियों,खेतो, बाग़ बगीचों आदि को दूषित करता है, और मनुष्य के साथ - साथ सभी अन्य जीवों के आहार को भी प्रदूषित कर देता है।
सिंगल यूज प्लास्टिक ऐसे प्लास्टिक उत्पाद होते है जिन्हे एक बार उपयोग करके फेंक दिया जाता है जैसे शेम्पू , डिटर्जेंट और सौन्दर्य प्रसाधनों आदि के पैकेट्स और बॉटल्स । दुनिया भर में उत्पादित सभी प्रकार के प्लास्टिकस में सिंगल यूज प्लास्टिक का एक तिहाई हिस्सेदारी है। मिण्डेक फाउण्डेशन , ऑस्ट्रेलिया के एक अध्ययन में पाया गया की वर्ष 2050 तक सिंगल यूज प्लास्टिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 5-10% तक बढ़ा सकता है । भारत में प्रति व्यक्ति सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादन 4kg करते है तथा दुनिया भर में सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करने वाले देशों में भारत का 94 स्थान है सिंगापुर , ऑस्ट्रेलिया , ओमान दुनिया भर में प्रति व्यक्ति उपयोग के मामले में सबसे ऊपर है । कई वर्षों तक पर्यावरण में बिना क्षरित हुए रहने के कारण सिंगल यूज प्लास्टिक माइक्रो प्लास्टिक बन जाता है । माइक्रो प्लास्टिक जिनका आकार 5 मिलीमीटर से कम होता है , इसकी मात्रा हमारे पारितंत्र को प्रभावित कर रही हैं । माइक्रो प्लास्टिक हमारे खाद्य उत्पादों का हिस्सा बन रहे हैं । और हमारे शरीर में एकत्रित होते जा रहे है । जिससे हमारे शरीर मे विभिन्न प्रकार की समस्यायें उत्पन्न हो रही है । दुनिया भर में बाग्लादेश ने सिंगल यूज प्लास्टिक बैन किया था । दैनिक जीवन में माइको प्लास्टिक युक्त प्रदूषित खाद सामाग्रियों का उपयोग करने के कारण न्यूरो सम्बन्धित बीमारियाँ , हार्मोन से सम्बंधित बीमारियो मोटापा, कैंसर , प्रतिरोधक क्षमता में कमी , तथा अस्थमा आदि उत्पन्न कर रही हैं । प्लास्टिक कचरों को जलाने पर खतरनाक रासायनिक जैसे डाइआक्जीन , पोलीक्लोरिनटेड , बाईफिनाइल आदि उत्पन्न होते हैं।
जो सभी जीवों के लिये घातक होते हैं । सिंगल यूज प्लास्टिक के स्थान पर बांस या कागज से बने उत्पादों, पुनः प्रयोग में लाने जाने वाले उत्पादक आदि के प्रयोग को बढ़ावा मिलेगा। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले, वन उत्पादों आदि का प्रयोगकर प्लेट , पत्तल आदि निर्माण करने वालों की आजीवीका को प्रोत्साहन मिलेगा । पर्यावरण प्रदूषण एवं कचरा प्रबंधन में सहूलियत होगी हमारी जैव विविधता के दृष्टि से भी यह प्रतिबन्ध सभी जीव जन्तुओं के लिये लाभदायक है । भूजल प्रदूषण पर कम करने में भी लाभदायक होगा यदि प्लास्टिक का कचरा रहेगा तो पानी का अवशोषण कम होगा और ग्राउंड वाटर लेवल घट जाएगा साथ ही विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से प्रभावित होगा।
लोग इसलिए सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग करते है,क्योंकि बहुत ही सस्ता होने के कारण बहुत आसानी से मार्केट में उपलब्ध है,लोगो को साथ में कोई कैरी बैग लेकर नहीं चलना पड़ता है।
प्राकृतिक उत्पादों का सभी को बढ़ावा देना चाहिए,और सरकार को प्राकृतिक उत्पादों ( जैसे, मिट्टी,कागज इत्यादि के सामान, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक) का उत्पादन कर रहे लघु एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहित कर प्राकृतिक उत्पादों की उपलब्धता सभी के लिए सुनिश्चित करनी चाहिए।
वन एवं जल सम्पदा और उसमे रहने वाले जीवों को बहुत अधिक ‌‌क्षति हो रही थी,क्योंकि प्लास्टिक उनके भोजन का हिस्सा बनता जा रहा था।
वैज्ञानिक परीक्षण में जीवों जैसे,मछली, गाय इत्यादि में माइक्रो प्लास्टिक के रूप में प्लास्टिक पाया गया।

सनी सिंह
(युवा पर्यावरणविद)
शोध छात्र, वनस्पति विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय*

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