पूर्व बाहुबली सांसद उमाकांत यादव को उम्रकैद की सजा

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27 साल पहले जीआरपी कांस्टेबल की गोलियों से भूनकर की थी हत्या
जौनपुर। जौनपुर कोर्ट ने सोमवार को पूर्व सांसद उमाकांत यादव और उनके छह साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। 5 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है। ये सजा उन्हें 27 साल पहले हुए जीआरपी कॉन्स्टेबल हत्याकांड में सुनाई गई है। पूर्वांचल की राजनीति में उमाकांत यादव बहुचर्चित सियासी चेहरा हैं। उनका नाम गेस्ट हाउस कांड में भी सामने आया था। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के कोर्ट संख्या 3 में सोमवार लगभग 3 बजे जज शरद कुमार त्रिपाठी ने सजा के मामले पर आधे घंटे बहस सुनी। जज शरद कुमार त्रिपाठी ने कैपिटल जजमेंट 4 बजे तक के लिए सुरक्षित रख लिया। इसके बाद उमाकान्त यादव अन्य आरोपियों के साथ पुलिस अभिरक्षा में कचहरी परिसर में वकील के चैम्बर में चले गए। इस दौरान मीडिया के सामने मुस्कुराते हुए फोटो भी खिंचवाई।
मामला 27 साल पुराना है। 4 फरवरी 1995 को जौनपुर के शाहगंज स्टेशन पर दो पक्षों में विवाद हो गया। जीआरपी चौकी को सूचना दी गई कि प्लेटफार्म 1 पर बेंच पर बैठने को लेकर दो पक्षों के बीच विवाद हो गया है। उनमें से एक व्यक्ति खुद को विधायक उमाकांत यादव का ड्राइवर राजकुमार बता रहा था। कहासुनी हुई तो ड्राइवर ने जीआरपी के सिपाही रघुनाथ सिंह को थप्पड़ जड़ दिया। अन्य सिपाहियों की मदद से राजकुमार को जीआरपी चौकी में लाकर बन्द किया गया।
किसी ने इस बात की सूचना उमाकान्त यादव को दी। आरोप है कि असलहे से लैस होकर उमाकान्त अपने गनर बच्चूलाल, पीआरडी जवान सूबेदार, धर्मराज, महेंद्र और सभाजीत के साथ पहुंच गए। इन सभी के हाथों में रिवॉल्वर, कार्बाइन रायफल और देसी तमंचा था। जीआरपी लॉकअप के सामने उमाकान्त ने सभी को ललकार कर गोलियां चलाने को कहा। इसके बाद स्टेशन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गयी। इस दौरान भगदड़ और दहशत मच गई। फायरिंग की चपेट में आने से जीआरपी कॉन्स्टेबल अजय सिंह ने मौके पर दम तोड़ दिया। वहीं गोली लगने से सिपाही लल्लन सिंह और रेलवे कर्मचारी निर्मल और यात्री भरत लाल गंभीर रूप से घायल हो गए। इस दौरान उमाकान्त अपने साथी को लॉकअप से निकाल कर फरार हो गए। कॉन्स्टेबल रघुनाथ सिंह ने घटना को लेकर एफआईआर दर्ज कर कराई थी। पुलिस ने हत्या, हत्या के प्रयास सहित 10 गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। इस मामले में छानबीन शुरू की गई। इसकी विवेचना सीबीसीआईडी को भी सौंपी गई। जीआरपी कॉन्स्टेबल अजय सिंह की हत्या का मामला कोर्ट में 27 साल चला। मामले में दौरान लगभग 598 बार सुनवाई हुई। सरकारी अधिवक्ता लाल बहादुर पाल और सीबीसीआईडी के सरकारी वकील मृत्युंजय सिंह ने इस मामले में 19 गवाहों को भी पेश कराया। गवाही के दौरान कांस्टेबल लल्लन सिंह पक्षद्रोही घोषित हो गया।

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