तो फिर अखिलेश के साथ आएंगे ओमप्रकाश राजभर

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चाचा शिवपाल यादव बनेंगे माध्यम, दिया संकेत
लखनऊ। उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी सीट दोबारा जीतने और मुजफ्फरनगर की खतौली सीट भाजपा से छीनने से उत्साहित समाजवादी पार्टी अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुट गई है। सपा एक बार फिर यूपी के छोटे दलों को साथ लेने की कोशिश में लगी है। इस बीच सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर की तरफ से भी अखिलेश यादव से दोबारा सुलह का संकेत दिया गया है। ओपी राजभर ने अखिलेश यादव से सुलह के लिए एक शर्त भी रखी है। ओपी राजभर चाहते हैं कि पहल शिवपाल की तरफ से हो। ओपी राजभर ने कहा कि अगर शिवपाल यादव कहेंगे तो अखिलेश यादव से सुलह संभव है।
एक निजी चैनल से बातचीत में ओपी राजभर ने शिवपाल यादव की तारीफों के पुल बांधें। राजभऱ ने कहा कि शिवपाल यादव राजनीति के मंझे मंझाए नेता हैं। वह कड़ी मेहनत करने के बाद यहां तक पहुंचे हैं। उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ कई सालों तक यूपी के जिलों को मथा है। वह जनता के बीच काम करने वाले और समाजवादी पार्टी को सत्ता में पहुंचाने वाले नेता हैं। मुलायम सिंह यादव के बाद समाजवादी पार्टी को ताकत देने वाला कोई नेता है तो वह शिवपाल यादव हैं।
दोबारा सपा से गठबंधन के सवाल पर ओपी राजभर ने साफ कहा कि किसी से भी किसी मुद्दे पर बात करने में कोई बुरी बुराई नहीं है। मुझे बात करने में कोई गुरेज नहीं है। एक बार फिर सपा से बात हो सकती है। शिवपाल कहेंगे तो अखिलेश से सुलह संभव है। साथ ही कहा कि यह भी देखना होगा कि क्या अखिलेश यादव अपने दम पर या ओपी राजभर को साथ लेकर दिल्ली की लड़ाई लड़ सकते हैं।
मैनपुरी लोकसभा सीट भारी वोटों से जीतने और खतौली की सीट भाजपा से छीनने के बाद सपा अगले आम चुनाव की रणनीति पर काम करने लगी है। इस रणनीति में सबसे अहम किरदार सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव निभाने जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव की तरह सपा की कोशिश छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी जंग में उतरने की है। सपा को छोड़ गए या रुठे क्षेत्रीय क्षत्रपों को फिर साथ लेने की रणनीति पर काम हो रहा है। शिवपाल को मैदान में उतारकर ओपी राजभर की सुभासपा को फिर से सपा गठबंधन में लाने की तैयारी पहले से हो रही है।
असल में शिवपाल यादव की छोटे दलों के ज्यादातर नेताओं से रिश्ते ठीक हैं। सपा ने इसी साल जुलाई में शिवपाल के साथ-साथ सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर को कहीं भी जाने के लिए मुक्त किया था। सपा के गठबंधन के मजबूत साथी राजभर अब अलग राह ले चुके हैं। उनकी भी दुबारा भाजपा में जाने की चर्चाएं खूब चलीं लेकिन बात नहीं बनीं। माना जा रहा है कि सुभासपा देर सबेर सपा गठबंधन का हिस्सा बन सकती है। हालांकि वह अभी सपा पर तंज करते रहते हैं। सुभासपा को भाजपा से भी कोई तवज्जो मिलती नहीं दिखती।
सपा से गठबंधन से सुभासपा को भी फायदा हुआ। सपा गठबंधन के दूसरे साथी महान दल भी खफा चल रहा है। उसकी शिकायत रही है कि उसे गठबंधन के अन्य साथियों के मुकाबले सपा नेतृत्व ने कम तवज्जो दी। महान दल को हालांकि विधानसभा में कोई सीट नहीं मिली थी लेकिन पिछड़ी अति जातियों में उसने कहीं कहीं असर दिखाया था। इसके केशव देव मौर्य ने सपा गठबंधन के लिए कई जिलों में यात्राएं निकाली थीं। इसी तरह संजय चौहान की पार्टी ने जोरदार प्रचार अभियान चलाया था। सपा के साथ रालोद व अपना दल कमेरावादी जैसे सहयोगी दल मजबूती से साथ हैं।
रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में सपा की करारी शिकस्त के बाद गठबंधन में दरार पड़ने लगी थी। ओम प्रकाश राजभर ने हार का ठीकरा सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर मढ़ा था। यही नहीं वह सपा मुखिया को एसी कमरे से बाहर निकलने की भी सलाह दे चुके हैं। विधानसभा चुनाव के वक्त सांसद असुदद्दीन औवेसी, ओम प्रकाश राजभर व शिवपाल यादव अलग मोर्चो बनाने के लिए कई बार बैठकें की थीं।
एआईएमआईएम अगर इस गठबंधन के साथ आ जाए तो कोई हैरत की बात नहीं। ओवैसी की पार्टी विधानसभा चुनाव में छोटे दलों के साथ गठजोड़ की कोशिश में थी। लेकिन शिवपाल बाद में खुद ही सपा से चुनाव लड़ गए थे।

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