आजमगढ़ : ‘मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह...’
By -Youth India Times
Wednesday, May 10, 2023
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भारतीय उर्दू कवि कैफी आजमी दुनियाभर में छोड़ गए अपनी छाप आजमगढ़। कैफी आजमी एक भारतीय उर्दू कवि थे जिनका जन्म 14 जनवरी 1919 को हुआ और 10 मई 2002 को उनका निधन हो गया। आज उनकी पु्ण्यतिथि मनाई जा रही।कैफी आजमी 20वीं शताब्दी के सबसे प्रसिद्ध भारतीय कवियों में से एक रहे। कैफी आजमी एक भारतीय उर्दू कवि थे जिनका जन्म 14 जनवरी 1919 को हुआ और 10 मई 2002 को उनका निधन हो गया। कैफी आजमी 20वीं शताब्दी के सबसे प्रसिद्ध भारतीय कवियों में से एक रहे। कैफ़ी आज़मी का जन्म यूपी के आजमगढ़ में हुआ था। उनका परिवार चाहता था कि वह एक मौलवी बने, इसलिए उन्होंने एक मदरसे में पढ़ाई की। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद, उन्होंने औपचारिक शिक्षा छोड़ दी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने बहुत कम उम्र से गजल लिखना शुरू कर दिया था और उन्होंने जो पहली गजल लिखी थी, वह थी इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े। आखिर-ए-शब, आवारा सजदे, कैफियात, सरमाया और नई गुलिस्तान उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध कविताएं रहीं। उनका निधन मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। पढ़ें कैफी आजमी की कलम से लिखे कुछ शब्द- 1- इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े, हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े, जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क, यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े, इक तुम कि तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ है, इक हम कि चल पड़े तो बहर-हाल चल पड़े, साक़ी सभी को है ग़म-ए-तिश्ना-लबी मगर, मय है उसी की नाम पे जिस के उबल पड़े, मुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह, जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े, 2- बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में, कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में, 3- तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो, आँखों में नमी हँसी लबों पर, क्या हाल है क्या दिखा रहे हो, बन जाएँगे ज़हर पीते पीते, ये अश्क जो पीते जा रहे हो, जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है, तुम क्यूँ उन्हें छेड़े जा रहे हो रेखाओं का खेल है मुक़द्दर रेखाओं से मात खा रहे हो, 4-झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं, दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं, तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता, मिरी तरह तिरा दिल बे-क़रार है कि नहीं, वो पल कि जिस में मोहब्बत जवान होती है, उस एक पल का तुझे इंतिज़ार है कि नहीं, तिरी उमीद पे ठुकरा रहा हूँ दुनिया को, तुझे भी अपने पे ये ए’तिबार है कि नहीं, 5-शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगा, कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था, जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा, बानी-ए-जश्न-ए-बहाराँ ने ये सोचा भी नहीं, किस ने काँटों को लहू अपना पिलाया होगा, बिजली के तार पे बैठा हुआ हँसता पंछी, सोचता है कि वो जंगल तो पराया होगा, अपने जंगल से जो घबरा के उड़े थे प्यासे, हर सराब उन को समुंदर नज़र आया होगा।