रिपोर्ट-खैरूल्ला महराजगंज। महाराजगंज जनपद में पुलिस विभाग में कार्यरत आज 4 लोगों को सेवानिवृत्त होने पर विदाई समारोह का आयोजन पुलिस अधीक्षक कार्यालय सभागार में संपन्न हुआ। इसमें मुख्य अतिथि पुलिस अधीक्षक डॉ कौस्तुभ व अपर पुलिस अधीक्षक ए, के, सिंह तथा सीओ सदर चौहान जी के अलावा तमाम पुलिस के लोग मौजूद रहे। उर्दू अनुवादक सैयद अली मूल रूप से गोरखपुर के निवासी 1995 में इस विभाग में न्यूक्त होअपने 28 साल की सेवा काल में कोई भी आरोप पत्र ना प्राप्त करने वाले शायद पहले कर्मचारियों होंगे। मुख्य आरक्षी मोहम्मद इजहार खान देवरिया सलेमपुर के जिन्होंने अपनी लंबी अवधि पीएसी और पुलिस विभाग में बिताया। उर्दू अनुवादक गुलाम साबिर जो कोतवाली महाराजगंज में नियुक्त हैं ,वह भी आज सेवा समाप्त होने पर सेवा निर्मित हुए। मोहम्मद शमीम फॉलोअर भी अपना कार्यकाल पूरा कर आज इस विभाग से विदा हुए। पुलिस अधीक्षक ने विदाई समारोह में सेवाकाल में संतुष्टि को ही बड़ा महत्व देते हुए दायित्व और फर्ज के निर्वाह को अपना महत्व बताया। उनका कहना था पुलिस विभाग का जवान रिटायर होने के बाद घर पहुंच कर पुलिस विभाग का ही नाम रोशन करता है। और अपनी पहचान पुलिस के ही रूप में बनाए रखता है, जैसे मेरी धर्मपत्नी आज भी कहती हैं कि मेरे पिता पुलिस विभाग में थे। यह पहचान जीवन भर पड़ा रहता है। उन्होंने विदाई समारोह में चारों लोगों के लिए शुभकामना प्रदान करते हुए उनके बाकी जीवन को हंसी खुशी से गुजरने की आशा व्यक्त की। उन्होंने कहा अपने स्वास्थ्य और दिनचर्या पर ध्यान आप लोग देते रहिएगा जिससे कि फिटनेस सही बनी रहे। शरीर साथ दिया तो सब कुछ है। विदाई समारोह में सेवा निर्मित होने वाले कर्मचारियों ने अपने अपने अनुभव विभाग में रहते हुए इस सभागार में साझा किया। एडिशनल एसपी ने कैशियर बाबू से पूछा इन लोगों का कोई डियू तो बाकी नहीं है। लोगों को बड़ा अच्छा लगा कि रिटायर होने से पहले इन लोगों के तमाम पेन्डिग चीजें पूरी हो इसकी चिंता उन्हें थी। यह संयोग होगा कि जबसे जिला महाराजगंज महाराजा अंजन के नाम पर बना होगा तब से आज तक 4 पुलिस के लोग रिटायर होते हैं और चारों एक ही समुदाय के मुस्लिम हो। शायद ऐसा कभी नहीं हुआ होगा। अंत में इन लोगों को एसपी ने एडिशनल ने और तमाम लोगों ने माला पहनाकर स्मृति चिन्ह देकर गाड़ी में बैठा विदा किया। इस अवसर पर सेवा निर्मित होने वाले लोगों के परिवार भी मौजूद थे। मात्र गुलाम साबिर अपनी पत्नी के बीमारी के कारण मौजूद नहीं रहे।