प्रयागराज। गरीबी जो न करा दे। रविवार को एक मां ने अस्पताल में पुत्र को जन्म देने के बाद अपनी ममता को ही बेचने का एलान कर दिया। अस्पताल में नवजात शिशु की कीमत लगने लगी। जानकारी मिली तो खरीदार भी पहुंचने लगे। अंतत: अस्पताल के चिकित्सकों और पैरा-मेडिकल स्टाफ ने मां को समझा बुझा कर बेटे को न बेचने के लिए राजी कर लिया।
शिशु के पालन-पोषण के लिए अस्पताल कर्मियों ने दो हजार रुपये प्रतिमाह देने का वादा किया है। आर्थिक तंगी की वजह से लाचार मां की यह कहानी मानवीय संवेदना को झकझोर देने वाली है। शहर के वीआईपी इलाके अशोकनगर से लगे नेवादा की एक महिला को प्रसव पीड़ा होने लगी। इसके बाद उसे छावनी बोर्ड के अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां जच्चा-बच्चा वार्ड में उसने दोपहर करीब एक बजे पुत्र को जन्म दिया।
कुछ देर बाद वह वह महिला अपने नवजात पुत्र को बेचने के लिए अस्पताल कर्मियों से बात करने लगी। जानकारी मिलने के बाद वार्ड आया और कुछ आशा बहुएं सक्रिय हो गईं। कुछ देर बाद ही अस्पताल में खरीदार पहुंचने लगे। पहले महिला ने अपने बेटे की कीमत 1.10 लाख लगाई। फिर सौदा बढ़ने पर कीमत 1.20 लाख और इसके बाद 1.50 लाख तक पहुंच गई।
वार्ड में नवजात शिशु के सौदे की जानकारी जब चिकित्सकों को मिली तब वह महिला को समझाने में जुट गए। तीन बच्चों की इस मां का कहना था कि उसका दूसरा पुत्र विकलांग है। वह चौका-बर्तन कर किसी तरह परिवार का गुजारा करती है। उसके पति कारपेंटर हैं। लेकिन, मजदूरी से इतनी रकम नहीं मिल पाती, जिससे वह विकलांग बच्चे का उपचार करा सकें।
ऐसे में बच्चे के उपचार के लिए वह इस शिशु को बेचना चाहती है। इस पर चिकित्सकों और कर्मियों ने उसे विकलांग बच्चे की दवा और नवजात शिशु के पालन के लिए दो हजार रुपये प्रतिमाह देने का वादा किया। कागज पर लिखित तौर पर चिकित्सकों ने इस आशय का सहमति पत्र महिला को दिया, तब जाकर उसने बेटे को बेचने इरादा छोड़ा।