योगी सरकार यू-टर्न : 24 घंटे में फिर आदेश वापस

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जिलों की पुलिसिंग की पावर IAS को देने का मामला
लखनऊ। पहले फैसला करना फिर यू टर्न लेना, सूबे की योगी आदित्यनाथ की सरकार का शगल बन गया है। कई मौकों पर ये साबित होता रहा है कि नौकरशाही बेअंदाजी के आलम में है। अपने आदेशों से सरकार को असहज करने वाली अफसरशाही अपने जल्दबाजी में लिए गए फैसलों से सरकार की कई बार भद्द पिटवा चुकी है। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने गुरुवार की सुबह एक शासनादेश जारी किया कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की बैठक की अध्यक्षता जिलाधिकारी करेंगे, जिले के कप्तान नहीं। जिले में थानेदारों की तैनाती के लिए भी जिलाधिकारी का अप्रूवल चाहिए होगा। जिन जिलों में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू है, वहां पुलिस कमिश्नर के पास ही ये अधिकार रहेगा। इस आदेश के बाद से ही पूरी ब्यूरोक्रेसी में बवाल मच गया। IAS और IPS अफसरों में वर्चस्व को लेकर अंदरुनी लड़ाई पिछले चार-पांच सरकारों से देखने को मिलती रही है। IPS अफसरों ने दबी जुबान में अपनी नाराजगी व्यक्त करना शुरू कर दी। अफसरों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि कानून व्यवस्था भी IAS अफसर ही संभाल लें। सूत्रों की मानें तो बड़े पुलिस अफसरों ने कप्तानों से क्राइम मीटिंग का बॉयकॉट करने की बात भी कही। मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में भी आया और रात में ही मुख्यमंत्री के आदेश के बाद शासनादेश वापस हो गया। अब सवाल ये उठता है कि जब मुख्यमंत्री ही नहीं चाहते थे तब इस तरह का आदेश क्यों पारित किया गया? इसके पहले भी साल 2017 में इसी तरह का आदेश आया था, उस वक्त राज्य के पुलिस मुखिया सुलखान सिंह ने काफी नाराजगी व्यक्त की थी। उस आदेश थे कई बड़े पुलिस अफसर भी खफा थे। कई जिलों में क्राइम मीटिंग में कलेक्टर और कप्तान के बीच बहस भी हो गई थी। जिसका असर ये हुआ कि आदेश को वापस करना पड़ा था। पूर्व DGP ओपी सिंह और पूर्व कार्यवाहक DGP देवेन्द्र सिंह चौहान के समय प्रदेश के गृह सचिव कोई भी फैसला बिना उनकी मर्जी के नहीं कर सकते थे। कई बार तो प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए DGP विभागीय मीटिंगों में भी गृह सचिव पर भारी पड़ते थे।

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