गठबंधन के बाद पहली परीक्षा में फेल हो गए राजभर
लखनऊ। इस बार भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान अपनी बिरादरी के वोट भी नहीं सहेज पाए। इस बात की चर्चा जोरों पर है कि हारने के बाद यह दारा सिंह चौहान की दूसरी हार है। पिछले चुनाव में जब दारा सपा से चुनाव में उतरे थे तो उन्हें 42.21 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार उन्हें मात्र 37.54 प्रतिशत ही वोट मिले। यानी दारा सिंह अपनी नोनिया चौहान जाति का भी भरपूर वोट नहीं ले पाए। घोसी विधानसभा क्षेत्र में करीब 55 हजार नोनिया चौहान मतदाता हैं। लेकिन दारा को इसका फायदा नहीं मिला। अहम बात यह भी है कि पिछले चुनाव में भी भाजपा हारी थी और उसके प्रत्याशी विजय राजभर को 33.57 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार भाजपा का मात्र चार फीसदी वोटर ही बढ़ पाया। उधर सपा को पिछले चुनाव में 42.21 प्रतिशत मिला था और इस बार पार्टी उम्मीदवार सुधाकर को 57.19 फीसदी मत मिले। सपा को इस बार 15 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले। भाजपा से गठबंधन के बाद ओमप्रकाश राजभर की यह पहली परीक्षा थी, पर वे इसमें फेल हो गए। माना जा रहा था कि उपचुनाव में राजभर जाति के लोगों का भाजपा को भरपूर साथ मिलेगा। इसके बड़े दावे भी किए जा रहे थे। क्योंकि सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर भाजपा के पाले में आ गए और यहां राजभर मतदाताओं की संख्या भी लगभग 50 हजार है। इस लिहाज से समीकरण तो बेहतर थे, लेकिन राजभर मतदाताओं का साथ दारा सिंह को नहीं मिला। यदि मिलता तो हार-जीत का अंतर इतना ज्यादा न होता। उपचुनाव में सपा ने भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के खिलाफ अवसरवादी और बाहरी होने का मुद्दा उठाया। सपा ने मतदाताओं के बीच बताया कि 16 महीने पहले चुनाव जीतने के लिए दारा सिंह भाजपा छोड़कर सपा में आए थे। चुनाव जीतने के बाद अब मंत्री बनने के लिए फिर भाजपा में चले गए हैं। इतना ही नहीं दारा सिंह के खिलाफ बाहरी होने का मुद्दा भी खूब उछाला गया। आजमगढ़ के मूल निवासी दारा सिंह 2017 में मऊ की मधुबन सीट से चुनाव लड़े थे। तब वह बसपा छोड़कर भाजपा में आए थे। इसके बाद 2022 का चुनाव आया तो वह भाजपा छोड़ सपा में चले गए और मऊ की घोसी सीट से चुनाव लड़े और जीते। 2023 में दारा सिंह फिर घोसी से चुनाव लड़े, लेकिन इस बार सपा की जगह भाजपा से थे।