फिल्म ‘कागज’ वाले ‘मृतक’ बोले- 47 वर्षों से जिंदा होने की लड़ाई जारी
आजमगढ़। सच कहूं तो फांसी देना, झूठ कहूं तो जेल, न्याय की लड़ाई लड़ने वाले हो जाते हैं फेल... ऐसा कहना है आजमगढ़ के अमिलो गांव निवासी मृतक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल बिहारी मृतक का। बुधवार को प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि मार्टीनगंज तहसील क्षेत्र के सुरहन गांव निवासी फिरतू राजभर (63) 35 वर्ष से तहसीलों व चकबंदी कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं। भू-राजस्व अभिलेखों में वह मृत घोषित हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 1976 से ऐसी समस्या से पीड़ित लोगों की लड़ाई लड़ी जा रही है। आज तक किसी भी सरकार या जनप्रतिनिधि, मंत्री ने जीवितों को मृतक दिखाकर फर्जीवाड़ा करने वालों के विरुद्ध विधानसभा, विधान परिषद, लोकसभा व राज्यसभा में आवाज नहीं उठाई। न ही कोई कानून बनाने का प्रस्ताव दिया। सरकार निष्पक्ष जांच करे तो तमाम प्रकरण सामने जाएंगे। 18 वर्षों तक संघर्ष करने के बाद लाल बिहारी ने खुद को सरकारी अभिलेखों में जिंदा घोषित कराया। लाल बिहारी के जीवन पर कागज नामक फिल्म भी बन चुकी है। दिलचस्प है लाल बिहारी मृतक की कहानी--लाल बिहारी को जुलाई 1976 में जीवित रहते हुए भी सरकारी अभिलेखों में मृत घोषित कर दिया गया था। खुद को जिंदा घोषित करने के लिए उन्होंने 18 वर्षों तक संघर्ष किया। तब जाकर जिला प्रशासन ने इन्हें 30 जून 1994 में पुनः जिंदा घोषित कर दिया लेकिन तब तक लालबिहारी मृतक प्रशासन की पूरी कलई ही खोल कर रख दी थी। लाल बिहारी के चाचा ने इनकी जमीन हड़पने के लिए सरकारी मुलाजिमों को घूस देकर मृत घोषित करवा दिया था। खुद को जिंदा साबित करने के लिए लाल बिहारी ने दर दर की ठोकरें खाईं, ढेर सारे हथकंडे अपनाए, खुद का श्राद्ध किया,‘विधवा’ पत्नी के लिए मुआवजा तक मांग लिया। यहां तक कि 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव तक लड़ने को खड़े हो गए। इसके पहले 1988 में उन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से पूर्व पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था। लंबी अदालती लड़ाई के बाद आखिरकार 1994 में पूरे 19 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इन्हें इंसाफ मिला। इस दौरान उन्हें 100 ऐसे लोगों के बारे में पता चला जिन्हें जिंदा रहते ही मृत घोषित कर दिया गया। उन्हें भी इंसाफ दिलाने के लिए ‘मृतक संघ’ की स्थापना की। लाल बिहारी खुद इस संघ के अध्यक्ष हैं।