अब तय होगा ओमप्रकाश राजभर का भविष्य

Youth India Times
By -
0
नापा जायेगा सुभासपा का राजनीतिक कद, तय होगा किसके पास हैं पिछड़ों के वोट



लखनऊ। घोसी विधानसभा क्षेत्र के लिए हो रहा उप चुनाव भाजपा के लिए जहां प्रतिष्ठा की लड़ाई है, वहीं, इस के चुनाव के नतीजे सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश की सियासी राह भी तय करेंगे। माना जा रहा है कि इस चुनाव का परिणाम ही लोकसभा चुनाव में सुभासपा का कद नापने का पैमाना भी बनेगा। इस चुनाव के नतीजे में मिले पिछड़ों के मतों के आधार पर ही लोकसभा सीटों में सुभासपा की हिस्सेदारी भी तय होगी। दरअसल एनडीए में शामिल होने के बाद भाजपा हाईकमान के साथ हुई पहली बैठक में ही पूर्वांचल के करीब एक दर्जन सीटों पर अपनी जाति का विशेष प्रभाव होने की बात कहते हुए कुछ सीटों पर दावेदारी पेश की थी। इनमें घोसी और गाजीपुर सीट को लेकर उनका विशेष दबाव था। सुभासभा अध्यक्ष ने भाजपा हाईकमान के सामने इन दोनों सीटों पर अपनी जाति की संख्या का हवाला देते हुए कहा था कि यदि इन दोनों सीटों को सुभासपा के खाते में दिया जाएगा तो 2019 के चुनाव में हुई भाजपा की हार बदला लिया जा सकता है। भाजपा हाईकमान के सामने सुभासपा अध्यक्ष ने पूर्वांचल में खुद को पिछड़ों का बड़ा नेता प्रोजेक्ट करने के साथ ही राजभर और उप जातियों पर पकड़ होने का दावा किया था। घोसी उप चुनाव में पिछड़ी जातियों में सबसे अधिक वोट राजभर जाति का ही है। मुस्लिम और दलितों के बाद तीसरे नंबर पर राजभर जाति की ही संख्या (50 हजार से अधिक) है। इसी आधार पर इन्होंने घोसी लोकसभा सीट पर दावेदारी भी पेश की है। इसलिए माना जा रहा है कि घोसी विधानसभा के उप चुनाव के बहाने भाजपा हाईकमान राजभर जाति पर सुभासपा अध्यक्ष की पकड़ के दावे को भी परखेगी। सूत्रों की माने तो घोसी उप चुनाव के बाद ही एनडीए के घटक दलों को दी जाने वाली सीटों को लेकर भी फैसला होना है। इस लिहाज से घोसी उप चुनाव का परिणाम सुभासपा अध्यक्ष के लिए अहम होगा। सूत्रों का कहना है कि इसके आधार ही तय होगा कि घोसी लोकसभा सीट सुभासपा के खाते में जाएगी या नहीं।यही कारण है कि सुभासपा अध्यक्ष घोसी उप चुनाव में पूरे दमखम से जुटे हुए हैं। उनका पूरा फोकस पिछड़ों को भाजपा के पक्ष में लामबंद करने पर है। इसके लिए वह न सिर्फ पिछड़ी जाति बहुल इलाकों में प्रचार कर रहे हैं, बल्कि उनका पूरा जोर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तीखा हमला करते हुए पिछड़ों को साधने पर है। वह पिछड़ों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि चार बार सत्ता में रहने के बाद भी अखिलेश ने पिछड़ों के लिए कुछ नहीं किया। उनकी कोशिश है कि सपा शासनकाल में सिर्फ एक जाति के विकास का मुद्दा उछालकर अन्य जातियों को लामबंद किया जाए।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)