आगरा। जीवन की संध्या गर खुशी-खुशी बीत जाए, आज ये सोचने भर की बात रह गयी। क्योंकि आगरा शहर का रामलाल वृद्धाश्रम चीख- चोख कर रहा है कि आखिर कसूर क्या है हमारा। 300 से अधिक बुजुर्गों में आज 96 साल के राष्ट्रपति पदक से सम्मानित शिक्षक को भी यह दिन देखना पड़ा। घर के लिए ही उन्होंने देश के भविष्य को बनाने के लिए 1948 से 1993 तक का समय दिया। लेकिन, अंतिम समय वो वृद्धाश्रम में पहुंचा दिए गये। रामलाल वृद्धाश्रम के संचालक शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि बमरौली कटारा निवासी हरीशंकर कटारा वृद्धाश्रम में पहुंचे। उनकी हालत सही नहीं थी। लगभग 96 साल के हरीशंकर कटारा को बिठाया। उन्हें पानी पिलाया खाना खिलाया। इसके बाद उन्होंने आप बीती सुनायी। हरीशंकर कटारा का कहना है कि 1969 में उन्हें शिक्षा विभाग में बेहतर काम करने के लिए सम्मानित किया गया था। उनका कहना है कि ताउम्र उन्होंने बच्चों के लिए काम किया। इसके साथ ही उनका सिद्धांत था कि ईमानदारी के साथ जीवन यापन करें। उनके दो बेटे हैं। छोटा बेटा शराब पीने का आदी हो गया। उसको समझाया, लेकिन नहीं माना। आंखों में आंसू भरकर बोले कि वो अभद्रता पर उतर आया। उम्र के इस पड़ाव में हर दिन अपमान सहन करना भारी पड़ गया। अंग्रेजों के सामने जो नहीं झुके वो अपनी ही औलाद की गाली सुनकर तिल-तिल कर मरने को मजबूर थे। उन्होंने बताया कि गाली गलौच तक मामला पहुंचा। इसके बाद अभद्रता की हर सीमा पार कर दी। नहीं सहन हुआ। पहले सोचा कि आत्महत्या कर लूं। लेकिन, सामाजिक और पारिवारिक हालातों को देखकर आत्महत्या नहीं कर पाया। रोज-रोज जलील होकर परेशान हो गया था। बेटे ने भी घर से निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब तो मैं आश्रम में ही रहना चाहता हूं।
राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पिता को पीटकर घर से निकाला
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Thursday, July 04, 20241 minute read
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आगरा। जीवन की संध्या गर खुशी-खुशी बीत जाए, आज ये सोचने भर की बात रह गयी। क्योंकि आगरा शहर का रामलाल वृद्धाश्रम चीख- चोख कर रहा है कि आखिर कसूर क्या है हमारा। 300 से अधिक बुजुर्गों में आज 96 साल के राष्ट्रपति पदक से सम्मानित शिक्षक को भी यह दिन देखना पड़ा। घर के लिए ही उन्होंने देश के भविष्य को बनाने के लिए 1948 से 1993 तक का समय दिया। लेकिन, अंतिम समय वो वृद्धाश्रम में पहुंचा दिए गये। रामलाल वृद्धाश्रम के संचालक शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि बमरौली कटारा निवासी हरीशंकर कटारा वृद्धाश्रम में पहुंचे। उनकी हालत सही नहीं थी। लगभग 96 साल के हरीशंकर कटारा को बिठाया। उन्हें पानी पिलाया खाना खिलाया। इसके बाद उन्होंने आप बीती सुनायी। हरीशंकर कटारा का कहना है कि 1969 में उन्हें शिक्षा विभाग में बेहतर काम करने के लिए सम्मानित किया गया था। उनका कहना है कि ताउम्र उन्होंने बच्चों के लिए काम किया। इसके साथ ही उनका सिद्धांत था कि ईमानदारी के साथ जीवन यापन करें। उनके दो बेटे हैं। छोटा बेटा शराब पीने का आदी हो गया। उसको समझाया, लेकिन नहीं माना। आंखों में आंसू भरकर बोले कि वो अभद्रता पर उतर आया। उम्र के इस पड़ाव में हर दिन अपमान सहन करना भारी पड़ गया। अंग्रेजों के सामने जो नहीं झुके वो अपनी ही औलाद की गाली सुनकर तिल-तिल कर मरने को मजबूर थे। उन्होंने बताया कि गाली गलौच तक मामला पहुंचा। इसके बाद अभद्रता की हर सीमा पार कर दी। नहीं सहन हुआ। पहले सोचा कि आत्महत्या कर लूं। लेकिन, सामाजिक और पारिवारिक हालातों को देखकर आत्महत्या नहीं कर पाया। रोज-रोज जलील होकर परेशान हो गया था। बेटे ने भी घर से निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब तो मैं आश्रम में ही रहना चाहता हूं।
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