गैंग टूटने के बाद पंकज ने पश्चिम उत्तर प्रदेश को बना लिया था ठिकाना
रिपोर्ट : वेद प्रकाश सिंह 'लल्ला'
आजमगढ़। अपराध जगत में पिछले डेढ़ दशक तक अपना आतंक कायम रखने वाले एक लाख का ईनाम घोषित अपराधी पंकज यादव के बुधवार को मारे जाने के बाद कुख्यात काली पासी गैंग की आखिरी कड़ी भी टूट गई। एसटीएफ के डिप्टी एसपी धर्मेश शाही की टीम ने बुधवार को तड़के मथुरा जिले के फरह थाना क्षेत्र में ईनामी पंकज को मुठभेड़ में ढेर कर दिया। कभी माफिया मुख्तार अंसारी और बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन के इशारे पर कई जघन्य वारदातों को अंजाम देने वाले काली पासी गैंग के तमाम शूटरों के मारे जाने के बाद अकेले बचे अपराधी पंकज ने इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अपना सुरक्षित ठिकाना बना लिया था। मऊ जिले के रानीपुर थाना क्षेत्र के तहिरापुर गांव के रहने वाले पंकज यादव ने लगभग 17 साल पहले मुख्तार गैंग के शार्प शूटर काली पासी के साथ जरायम की दुनिया में कदम रखा था। वर्ष 2010 के 19 मार्च को मऊ जिले के दक्षिण टोला थाना क्षेत्र में इस गिरोह ने ठेकेदार अजय प्रताप सिंह उर्फ मन्ना हत्याकांड के मुख्य गवाह रामसिंह मौर्य एवं उनके सुरक्षाकर्मी की दिनदहाड़े हत्या कर खूब सुर्खियां बटोरी थी। इस वारदात को काली पासी, शेषनाथ चौहान, पंकज तथा राज श्रीवास्तव ने मुख्तार अंसारी के कहने पर अंजाम दिया था। उस दौरान इस गिरोह के सदस्यों में इन चारों अपराधियों के आलावा अनुज कन्नौजिया, लालू यादव, श्यामबाबू पासी व धर्मेंद्र सिंह सहित तमाम अपराधी अपराध जगत में काफी नाम कमा चुके थे। इस गैंग को नेस्तनाबूत करने के लिए वर्ष 2010 में इनकाउंटर स्पेशलिस्ट कमलेश सिंह को लगाया गया। उनके द्वारा छानबीन में यह बात सामने आई कि मऊ जिले के दक्षिण टोला थाना क्षेत्र में चंदौली जिले के निवासी व ठेकेदार विजय सिंह बनकर रह रहा काली पासी वहां की पुलिस चौकी में बैठ पुलिसकर्मियों के साथ मुर्गे और दारू की दावत तथा अन्य खर्च भी उठाता था। कमलेश सिंह द्वारा की जा रही निगहबानी की जानकारी जब काली पासी को हुई तो उसने अपने गिरोह के साथ उस दौर में तमाम नामचीन अपराधियों का काम तमाम करने वाले पुलिस इंस्पेक्टर कमलेश सिंह को मारने की योजना बना लिया था। यहां तक कि इस गिरोह ने कमलेश सिंह के पैतृक गांव तक जाकर रेकी कर ली थी। इसी बीच इस गिरोह का राज श्रीवास्तव कमलेश सिंह के हत्थे चढ़ गया और उसके माध्यम से जब कमलेश सिंह को सारी बात पता चली तो वह तत्कालीन एसपी भगवान स्वरूप को जानकारी देने के साथ ही इस गिरोह के पीछे पड़ गए। नतीजा रहा कि वर्ष 2010 में ईनामी काली पासी, राज श्रीवास्तव तथा शेषनाथ चौहान पर क्रमशः 50, 30 तथा पांच हजार रुपए पुरस्कार घोषित किए गए। तीनों ईनामी बदमाश आजमगढ़ शहर कोतवाली क्षेत्र में अजमतपुर कोडर गांव के समीप मई महीने में हुई मुठभेड़ में मारे गए। बताते चलें कि इसी वर्ष मध्य प्रदेश के भोपाल से लौटे पंकज को तत्कालीन एसओजी टीम प्रभारी कमलेश सिंह ने आजमगढ़ के सिविल लाइंस क्षेत्र में घेरेबंदी कर ली लेकिन थोड़ी सी चूक हुई और पंकज तथा उसके साथ रहे एक अन्य बदमाश ने सिपाही रवीन्द्र सिंह से उठा पटक कर भागने में कामयाब रहा। इसके बाद इस गिरोह के धर्मेंद्र सिंह सहित अन्य बदमाशों के मारे जाने के बाद जिंदा बचे अपराधियों में पंकज, मोनू चवन्नी आदि बदमाश बिहार के माफिया शहाबुद्दीन से जुड़कर अपराध करने लगे। बताते हैं कि काली पासी के मारे जाने के बाद पंकज उसकी रखैल रीना को लेकर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले को अपना ठिकाना बनाया लेकिन वहां से एसटीएफ ने उसे ढूंढ निकाला। जेल से छूटने के बाद अपने साथियों एवं आकाओं के मारे जाने के बाद अकेला पड़ चुके पंकज ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर रुख किया और वहां के अपराधियों के साथ हत्या, लूट एवं रंगदारी की घटनाओं को अंजाम देने लगा। इधर ईनाम घोषित अपराधियों की तलाश में जुटी एसटीएफ ने एक लाख रुपए पुरस्कार घोषित अपराधी पंकज की लोकेशन ढूंढ निकाला और बुधवार को मथुरा जिले में उसका काम तमाम कर दिया। इस दुर्दांत अपराधी के खिलाफ पूर्वांचल आजमगढ़, गाजीपुर,मऊ तथा गोरखपुर के आलावा बिहार के सारण (छपरा) जिले में हत्या, लूट, रंगदारी तथा गैंगस्टर के कुल 36 संगीन मामले दर्ज हैं। वर्ष 2008 में जिले के मेंहनगर थाने में पंकज के खिलाफ हत्या प्रयास का पहला मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद 2010 में शहर कोतवाली में हत्या व लूट तथा 2012 में जहानागंज थाने में जानलेवा हमले का अभियोग दर्ज किया गया। इस तरह आजमगढ़ में आठ,मऊ में ग्यारह, गाजीपुर में तीन, गोरखपुर में दो तथा बिहार के सारण जिले में दो संगीन मामले पंकज के खाते में दर्ज हैं। अन्य मामलों में एनडीपीएस, धोखाधड़ी, शस्त्र अधिनियम जैसे अभियोग भी उसके खिलाफ दर्ज हैं।