लखनऊ। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सख्त निर्देश के बावजूद भाजपा के सदस्यता अभियान में जनप्रतिनिधियों ने रूचि नहीं ली। 2 से 25 सितंबर तक चले पहले चरण के सदस्यता अभियान में कई ऐसे सांसद और विधायक हैं, जिन्होंने पांच सौ से कम सदस्य बनाए हैं। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बिना नाम लिए इन जनप्रतिनिधियों को सख्त हिदायत दी और दूसरे चरण में 15 अक्तूबर तक लक्ष्य पूरा करने के निर्देश दिया। पार्टी ने सभी सांसदों और विधायकों को 10-10 हजार नए सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया गया है। पहला चरण 25 सितंबर को समाप्त हुआ और दूसरे चरण की शुरुआत मंगलवार से हो रही है। इसी कड़ी में सोमवार को लखनऊ स्थित विश्वेश्वैरया सभागार में सदस्यता अभियान की समीक्षा के लिए बैठक हुई। इसमें पता चला कि पहले चरण में सबसे खराब प्रदर्शन सांसदों और विधायकों का रहा है।
प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह ने अब तक के अभियान का रिपोर्ट कार्ड पेश किया। इसमें बताया गया कि 15 विधायकों ने अभी तक 500 सदस्य भी नहीं बनाए हैं। वहीं, 35 विधायक पांच हजार का आंकड़ा नहीं पार कर पाए हैं। इसी तरह दो सांसदों ने पांच सौ और पांच सांसदों ने एक हजार से भी कम सदस्य बनाए हैं। हालांकि दो करोड़ सदस्य बनाने के लक्ष्य के सापेक्ष अब तक 1.70 करोड़ सदस्य बन गए हैं।
बैठक में यह भी बताया गया कि 35 जिलों में डेढ़ लाख और दस जिलों में एक लाख से अधिक सदस्य बने हैं। कई विधानसभा क्षेत्रों में अभी दस हजार सदस्य भी नहीं बने हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक बूथ पर 200 सदस्य बनाए जाने हैं। लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे बूथ हैं जहां सौ सदस्य भी नहीं बने हैं। हालांकि रिपोर्ट में सदस्यता अभियान में फिसड्डी सांसदों व विधायकों के नाम को गोपनीय रखा गया है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कानपुर क्षेत्र के प्रभारी एवं प्रदेश महामंत्री अनूप गुप्ता से कहा आपका कानपुर क्षेत्र छोटा होते हुए भी वहां सदस्यता कम है। उधर, पार्टी ने अब सक्रिय सदस्य बनने के लिए 100 सामान्य सदस्य बनाने की अनिवार्यता को घटाकर 50 सदस्य कर दिया है। चौधरी ने सदस्यता अभियान में पिछड़े, दलित और महिलाओं पर अधिक फोकस करने को कहा है। वहीं सदस्यता अभियान में अव्वल रहने वाले जिलों के भाजपा जिलाध्यक्षों ने प्रजेंटेशन दिया। हरदोई के भाजपा अध्यक्ष अजीत सिंह और आगरा के भाजपा अध्यक्ष भानु ने बताया कि रोजाना अभियान की समीक्षा की है। सदस्यता अभियान में फिसड्डी कई विधायक पोल खुलते ही पानी पीने के बहाने बैठक छोड़ खिसक लिए। वहीं, कई मंत्री और विधायक तो बैठक में आए ही नहीं। जबकि संगठन ने सभी विधायक, सांसद और मंत्रियों को बैठक में अनिवार्य रूप से आने को कहा था।