राकेश अचल
आजादी के बाद देश को सबसे प्रभावी नारा ' बंटोगे तो कटोगे ' नारा देने वाली भाजपा पर हमें गर्व है । भाजपा हालांकि ये नारा देकर आपस में ही बंटती और कटती नजर आ रही है ,केवल और केवल एक कुर्सी भाजपा की युति को जैसे -तैसे बचाये हैं। कुर्सी के इस महासंग्राम में माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने अब संभाजी महाराज की ' एन्ट्री ' भी करा दी है जो कभी चुनावी और दलगत राजनीति में नहीं फंसे। उनके जमाने में न लोकतंत्र था और न ठोकतंत्र।
प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने महाराष्ट्र की जनता को याद दिलाया कि उनकी सरकार ने तो संभाजी महाराज के हत्यारे औरंगजेब के औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर किया और बाला साहब ठाकरे की इच्छा पूरी की ,लेकिन महामना मोदी भूल गए कि उन्होंने ही बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे की पीठ में औरंगजेब की तरह न सिर्फ छुरा भौका बल्कि ठाकरे की पार्टी के दो टुकड़े भी करा दिए। मोदी जी का ये कहना एकदम सही है कि उन्होंने हिंदुत्व के मामले में कोई समझौता नहीं किया। वे समझौता करते भी तो किससे करते ? उद्धव ठाकरे ने उनसे समझौता करके देख तो लिया ,उन्हें आखिर क्या मिला विश्वासघात के अलावा ।
देश को गर्व है कि माननीय मोदी जी देश में कोई भी चुनाव मुद्दों पर नहीं होने देते ,वे इसके लिए गड़े मुर्दे खोज लाते है। उन्होंने ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे पहले डॉ अम्बेडकर का इस्तेमाल किया,फिर वे स्वातंत्र्य वीर सावरकर को ले आये और अब उनके पास संभाजी महाराज है। आप जनाते ही होंगे कि संभाजी महाराज छत्रिपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे और उनका वध औरंगजेब ने करा दिया था। मोदी जी का आरोप है कि कुछ लोग औरंगजेब को मसीहा मानते हैं। मोदी जी किसी को ये नहीं बताते कि पिछले दिनों महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज की प्रतिमा कैसे गिरी थी और उसके निर्माण में कितना भ्र्ष्टाचार हुआ था ?
महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनेगी ये तो मै नहीं जानता लेकिन मुझे इतना पता है कि माननीय मोदी जी विपक्ष के ऊपर जितने भी व्यंग्य बाण छोड़ रहे हैं वे निशाने पर लगने के बजाय उनकी अपनी पार्टी और युति को जख्मी बना रहे हैं। उनके राष्ट्रदूत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे से महाराष्ट्र की जनता ' बंटेगी या कटेगी ' इसका तो पता नहीं है लेकिन इस नारे से महायुति जरूर कटती-बंटती दिखाई दे रही है । युति में शामिल घटक ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र के भाजपाई भी इस नारे से आतंकित हैं। उन्हें डर है कि ये नारा कहीं उलटा न पड़ जाए।इस आशंका-कुशंका के बावजूद नारा इस्तेमाल किया जा रहा है ,हालाँकि मोदी जी अपने लिए नया नारा ' एक रहोगे तो सेफ रहोगे गढ़ लिया है ,लेकिन ये नारा उतना धारदार नहीं है जितना की योगी जा का नारा है।
लगता है कि मोदी जी और उनकी भाजपा महाराष्ट्र की जनता के मिजाज को सही तरीके से भांप नहीं पायी है ,अन्यथा क्या मजाल थी उप मुख्यमंत्री अजित पंवार की ,क्या मजाल थी पंकजा मुंडे की या क्या मजाल थी पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की जो वे ' बंटोगे तो कटोगे ' के नारे का विरोध करते और उसे अप्रासंगिक बताते। मोदी जी जिस संविधान की लाल पोथी को राहुल गांधी के हाथों में देखकर भड़क जाते हैं अब उसी संविधान का हवाला देकर आरक्षण का मुद्दा उठा रहे हैं। ये संविधान किसी हेडगेवार या गोलवलकर का बनाया हुया नहीं है ,इसे डॉ भीमराव आंबेडकर ने बनाया था जो किसी हिंदूवादी संगठन के सदस्य नहीं थे, जिन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव हों या झारखंड विधानसभा के चुनाव भाजपा मुद्दों के बजाय मुर्दों के साथ ही प्रवर्तन निदेशालय के भरोसे है।प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी हो या केंचुआ यानि केंद्रीय चुनाव आयोग भाजपा के पक्ष में लगातार सक्रिय है । ईडी छापामारी कर रही है और केंचुआ विपक्षी नेताओं के हेलीकाप्टरों की सघन जांच ,ताकि भाजपा पर कोई आंच न आये। भाजपा के सहयोगी इन संवैधानिक संगठनों को सक्रियता से भाजपा को इन दोनों राज्यों में सत्ता मिलना लगभग तय है किन्तु अभी मशीनों से जनादेश का आना तो बाक़ी है। हमारे यहां कहा जाता है कि - का वर्षा जब कृषि सुखानी ? महाराष्ट्र और झारखण्ड में वोटों की खेती सूख चुकी है। अब उसे सींचने का कोई लाभ शायद नहीं होने वाला ,लेकिन याद रखिये कि -' मोदी हैं ,तो मुमकिन है। कुछ भी मुमकिन है।
मेरा दृढ विश्वास है कि यदि भाजपा झारखंड और महाराष्ट्र की सत्ता में आती है तो देश की आजादी के बाद ' बटोगे तो कटोगे ' नारा पहला ऐसा नारा होगा जो आजादी के पहले महात्मा गाँधी द्वारा दिए गए ' करो या मरो ' के नारे जैसा असरदार साबित माना जाएगा । इस नारे की कामयाबी पर ही मोदी जी का ,शाह जी का ,योगी जी का और महामना मोहन भागवत साहब का भविष्य टिका है। भारत का भविष्य तो भगवान के भरोसे पहले भी था और आज भी है। संभाजी महाराज,वीर सावरकर, डॉ अम्बेडकर ,अडानी आदि भाजपा पर कृपा करें । राहुल गांधी अपनी लाल किताब के भरोसे चुनाव जीत जाएँ तो जीत जाएँ ,वरना उन्हें मशीन और मशीनरी के सामने तो हारना ही है।