कानूनी एक्सपर्ट ने किया दावा, सीएम योगी को लग सकता है बड़ा झटका
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिदेशक के चयन के लिए बनाई गई नियमावली खारिज हो सकती है. यह दावा पूर्व डीजीपी और हाईकोर्ट में वकील सुलखान सिंह ने किया है. सुलखान सिंह ने कहा कि यह फैसला एक नियमावली बनाता है. राज्य सरकार को नियमावली बनाने की शक्ति है तो इस हिसाब से उसने नियमावली बनाई है. पर डीजीपी की तैनाती के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2019 में एक फैसला दिया है कि कोई भी ऐसा कानून एक्ट या रूल जो इस फैसले की भावना के खिलाफ है वह स्थगित रहेगा. तो यह जो नियमावली बन रही है या सुप्रीम कोर्ट की उस फैसले की भावना के पूर्णता विपरीत है. सुलखान सिंह ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बहुत सारे पॉइंट थे पर उसमें डीजीपी के अपॉइंटमेंट का भी एक बिंदु था. इसके अलावा लॉ एन्ड आर्डर का सेपरेशन और ढेर सारे बिंदु थे और डीजीपी के अपॉइंटमेंट के बारे में उसमें कहा गया था कि यूपीएससी उसमें एक पैनल तैयार करेगा जिसमें स्टेट गवर्नमेंट नाम भेजेगा और यूपीएससी पैनल तैयार करेगा तीन नाम का. इसमें यूपीएससी की प्रक्रिया है, जिसमें एक MHA का अधिकारी एक अधिकारी और एक यूपीएससी का मेंबर रहता है. यही तीन लोगों का पैनल तय करता है कि कौन डीजीपी होगा. मेरिट और सीनियरिटी को देखकर तय होती हैं.
उन्होंने कहा कि अब जो डीजीपी बनेंगे उस पैनल में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज होंगे, जिसे अपनी मर्जी से सरकार जिसको चाहेगी उसको रखेगी, चीफ सेक्रेटरी होंगे, यूपीएससी के एक व्यक्ति को रखा जाएगा. अपर मुख्य सचिव गृह होंगे और एक रिटायर्ड डीजीपी होंगे. यह तो सब अधिकारियों की समिति है जो मुख्यमंत्री की और सरकार की इच्छा के खिलाफ किसी का नाम प्रपोज कर दे. यह संभव नहीं है. सुलखान सिंह ने कहा कि, मुझे ऐसा लगता है कि जो एक याचिका पिछले दिनों एक्टिंग डीजीपी को लेकर के डाली गई थी उससे बचाने के लिए यह बनाया गया है. अब कोर्ट में कहा जा सकता है कि हमने अपना रूल बना दिया है. हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कहीं कुछ नहीं किया है. हमारा कोई डीजीपी एक्टिंग नहीं है. लेकिन मार्च 2019 का जो फैसला है उस फैसले के परिपेक्ष में या फैसला नहीं टिक पाएगा यह खारिज भी हो सकता है. पूर्व डीजीपी ने आगे कहा कि, मुझे नहीं लगता कि कोई पॉलीटिकल प्रेशर जैसा कुछ था, क्योंकि अखिलेश यादव खुद कभी यूपीएससी के पैनल का पालन नहीं किया. उन्होंने 5 साल में कभी भी इस नियम के तहत डीजीपी तैनात नहीं किया. कभी एक महीने के लिए कभी 2 महीने के लिए कभी 3 महीने के लिए डीजीपी बनाएं. कभी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं किया तो उनका दबाव क्या होगा?