लिंग परीक्षण में खुला राज; मिली 20 साल की सजा
बरेली। खुद को किन्नर बताने वाले ने आठ साल की बच्ची से दुष्कर्म किया। रिपोर्ट दर्ज होने के बाद मामला जब कोर्ट पहुंचा तो किन्नर होने का हवाला देकर कहने लगा कि वह तो दुष्कर्म कर ही नहीं सकता। हालांकि कोर्ट के आदेश पर जेल प्रशासन ने उसका एसजीपीजीआई में लिंग परीक्षण कराया तो वह पुरुष निकला। इसी आधार पर स्पेशल जज पॉक्सो एक्ट न्यायालय संख्या तीन उमाशंकर कहार ने उसे 20 साल कैद की सुजा सुनाई है। 12 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की राशि पीड़िता को बतौर पुनर्वास देने का आदेश दिया है। बच्ची की मां ने नौ अप्रैल 2022 को पड़ोस में रहने वाले फरीन किन्नर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि उसकी आठ साल की बेटी 27 मार्च 2022 को दोपहर दो तीन बजे फरीन किन्नर की बुआ के घर टीवी देखने गई थी। फरीन बेटी को यहां से खीरा खिलाने के बहाने अपने घर ले गया। बेटी जब आई तो उसके गुप्तांग से रक्तस्त्राव हो रहा था। पूछने पर उसने दुष्कर्म की बात कही। वह बेटी को डॉक्टर के पास ले गई। 10-12 दिन उसका इलाज चला। रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने विवेचना की और 22 जून 2022 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से नौ साक्ष्य और नौ गवाह पेश किए गए। बचाव पक्ष ने फरीन को किन्नर साबित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुआ। पीड़िता के बयान और गवाहों को सुनने, साक्ष्यों के अवलोकन के बाद कोर्ट ने फरीन को दोषी माना। खूब हुई किन्नर साबित करने की कोशिश, पर मेडिकल में पकड़ा गया। बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने 24 अगस्त 2023 को कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि फरीन की सामाजिक पृष्ठभूमि किन्नर की है। वह महिलाओं के कपड़े पहनती है। महिलाओं की तरह ही रहती है। फरीन ने भी अपने बयान में दावा किया कि वह जन्म से महिला किन्नर है। वह दुष्कर्म नहीं कर सकता। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर जेल प्रशासन ने 18 सितंबर 2024 को फरीन किन्नर का लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई में लिंग परीक्षण किया। इसमें फरीन के पुरुष होने की पुष्टि हुई। 27 सितंबर को अभियोजन पक्ष की ओर से फरीन की लिंग परीक्षण रिपोर्ट कोर्ट में पेश की गई। फरीन किन्नर को सजा सुनाने के दौरान स्पेशल जज ने सुप्रीम कोर्ट समेत कई राज्यों के हाईकोर्ट के आदेशों को नजीर के रूप में रखा। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य बनाम छोटेलाल एफआईआर 2011 एससी पेज 697 का हवाला दिया। कहा कि संबंधित मामले में उच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि यदि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर कोई बाहरी या आंतरिक चोट के निशान न हों तथा डॉक्टर द्वारा मेडिकोलीगल परीक्षण में बलात्कार न होने का तथ्य अंकित किया है तो भी पीड़िता के बयानों पर कोर्ट निष्कर्ष देगी। महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा हाईकोर्ट के आदेशों का भी हवाला दिया।